रक्षाबंधन जो भाई बहन के सुरक्षा, प्रेम और स्नेह का प्रतीक है एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में मनाया जाता हैl
रक्षाबंधन एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में मनाया जाता है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त में पड़ता है।
रक्षा-बंधन, जिसका अर्थ है “सुरक्षा का बंधन,” एक त्योहार है जो भाई-बहन के बीच के पवित्र बंधन को मजबूत बनाये रखने का पर्व है है। इस दिन, बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी (एक पवित्र धागा) बांधती हैं, जो सुरक्षा, प्रेम और स्नेह का प्रतीक है।
रक्षाबंधन की वर्तमान परंपराएँ:
रक्षाबंधन के दिन बहनें सुबह स्नान कर पूजा की थाली सजाती हैं, जिसमें राखी, कुमकुम, चावल, दीपक और मिठाई होती है। भाई को तिलक लगाकर और राखी बांधने के बाद बहन उसकी लंबी उम्र, सुख-समृद्धि की कामना करती है। भाई बहन को उपहार स्वरूप कुछ भेंट देता है और उसकी रक्षा का वचन देता है। परिवारिक समारोह और भोज होता है, वातावरण सौहार्दमये हो जाता है l
रक्षाबंधन का महत्व
रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में प्रेम, विश्वास, और सुरक्षा के मूल्यों को भी उजागर करता है। यह पर्व सामाजिक सद्भाव और एकता को भी बल देता है, जहां बहनें भाइयों को राखी बांधने के बाद उपहार स्वरूप मिठाई खिलाती हैं और भाई उन्हें उपहार देते हैं।
रक्षाबंधन का पर्व भारतीय संस्कृति में प्रेम, विश्वास और भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की महत्ता को दर्शाता है। हालांकि, यह केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं है; बल्कि, इसका महत्व व्यापक है, और यह समाज में आपसी स्नेह, सामंजस्य और एकता का प्रतीक भी है।यह त्योहार मुख्यतः उत्तर भारत, पश्चिम भारत, मध्य भारत और अन्य हिंदू धर्मावलंबियों के बीच बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ कथाएँ:
- यह कथा महाभारत की है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान अपनी उंगली काट ली थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें वचन दिया कि वे सदैव उनकी रक्षा करेंगे। यही वचन रक्षाबंधन का मूल भाव है, जो हमें अपने प्रियजनों की रक्षा का संकल्प दिलाता है।
- इंद्र और इंद्राणी की कथा: प्राचीन काल में देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ। असुरों की बढ़ती शक्ति से देवता परेशान हो गए। इंद्र की पत्नी शची (इंद्राणी) ने रक्षासूत्र बनाया और उसे इंद्र की कलाई पर बांध दिया, जिससे इंद्र को विजय प्राप्त हुई। यहीं से रक्षाबंधन की परंपरा का प्रारम्भ माना जाता है।
- राजा बलि और विष्णु भगवान की कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगकर उसे पाताल लोक भेज दिया। बलि की पत्नी ने विष्णु भगवान को राखी बांधकर रक्षा का वचन लिया, जिसके कारण विष्णु ने लक्ष्मीजी के साथ स्वर्ग लौटने की अनुमति प्राप्त की। इस कथा से भी रक्षाबंधन का संबंध जुड़ा हुआ है।
वर्तमान के सन्दर्भ में रक्षाबंधन
समय के साथ रक्षाबंधन के पर्व ने आधुनिक संदर्भ में भी अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है। आजकल यह पर्व पारिवारिक संबंधों को मजबूती देने, और समाज में एकता और सामूहिक जिम्मेदारी की भावना को प्रकट करने के रूप में देखा जाता है।